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मा नो॑ मर्धी॒रा भ॑रा द॒द्धि तन्नः॒ प्र दा॒शुषे॒ दात॑वे॒ भूरि॒ यत्ते॑। नव्ये॑ दे॒ष्णे श॒स्ते अ॒स्मिन्त॑ उ॒क्थे प्र ब्र॑वाम व॒यमि॑न्द्र स्तु॒वन्तः॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no mardhīr ā bharā daddhi tan naḥ pra dāśuṣe dātave bhūri yat te | navye deṣṇe śaste asmin ta ukthe pra bravāma vayam indra stuvantaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। म॒र्धीः॒। आ। भ॒र॒। द॒द्धि। तत्। नः॒। प्र। दा॒शुषे॑। दात॑वे। भूरि॑। यत्। ते॒। नव्ये॑। दे॒ष्णे। श॒स्ते। अ॒स्मिन्। ते॒। उ॒क्थे। प्र। ब्र॒वा॒म॒। व॒यम्। इ॒न्द्र॒। स्तु॒वन्तः॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:20» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! आप (नः) हम लोगों को (मा) मत (मर्धीः) गीला कीजिये हम लोगों के लिये (तत्) उस धन को (आ, भर) धारण कीजिये (यत्) जो (ते) आपके (अस्मिन्) इस (नव्ये) नवीन (देष्णे) देने और (ते) आपके (शस्ते) प्रशंसित (उक्थे) कहने योग्य व्यवहार में (भूरि) बहुत द्रव्य है वह (दाशुषे) दानशील के लिये (दातवे) देने को (प्र) अत्यन्त धारण कीजिये और (नः) हम सब लोगों के लिये (दद्धि) दीजिये और (स्तुवन्तः) स्तुति करते हुए (वयम्) हम लोग यह आपको (प्र, ब्रवाम) उपदेश करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आपके लिये करने योग्य कर्म्म जो-जो कहें उस-उसका आचरण करो और प्रजा, मन्त्री और राज्य की उन्नति के लिये बहुत धन, विद्या और न्याय को फैलाओ ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं नो मा मर्धीर्नस्तदाऽऽभर यत्तेऽस्मिन् नव्ये देष्णे ते शस्त उक्थे भूरि द्रव्यमस्ति तद्दाशुषे दातवे प्रभर सर्वेभ्यो नोऽस्मभ्यं दद्धि। स्तुवन्तो वयमिदं त्वां प्र ब्रवाम ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (मर्धीः) उन्दितान् मा कुरु (आ) (भर) धर (दद्धि) देहि (तत्) धनम् (नः) अस्मभ्यम् (प्र) (दाशुषे) दानशीलाय (दातवे) दातुम् (भूरि) बहु (यत्) (ते) तव (नव्ये) नवीने (देष्णे) दातुं योग्ये (शस्ते) प्रशंसिते (अस्मिन्) (ते) तुभ्यम् (उक्थे) वक्तव्ये (प्र) (ब्रवाम) उपदिशेम (वयम्) (इन्द्र) राजन् (स्तुवन्तः) ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजंस्तुभ्यं कर्त्तव्यं कर्म्म यद्यद्वदेम तत्तदाचर प्रजाऽमात्यराज्योन्नतये बहु धनं विद्यान्यायौ च प्रसारय ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तुझ्यासाठी जे योग्य कर्म सांगितलेले आहे त्याचे आचरण कर व प्रजा, मंत्री व राज्याच्या उन्नतीसाठी पुष्कळ धन, विद्या व न्याय प्रसृत कर. ॥ १० ॥